डिमेंशिया के रोगी का सही देखभाल: परिवार की सहायता का महत्व (A Complete Guide on Dementia’s Patient help)

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डिमेंशिया के रोगी का सही देखभाल: परिवार की सहायता का महत्व

ज्यादातर लोग डिमेंशिया अथवा मनोभ्रंश को सिर्फ एक भूलने की बीमारी समझ लेते हैं। मनोभ्रंश में भूल जाना एक लक्षण है, पर इसकी पटकथा कुछ और ही हैं। यह कोई एक खास बीमारी नहीं बल्कि कई मानसिक रोगों के लक्षणों को एक साथ दिखना ही मनोभ्रंश या डिमेंशिया है। इसमें आप अल्ज़ाइमर, पार्किंसंस जैसे कई अन्य मानसिक बिमारियों के लक्षणों को एक साथ देख सकते हैं। मनोभ्रंश में भूलने के साथ-साथ सोचने समझने में कठिनाई, छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझा पाने में दिक्कत, व्यक्तित्व में बदलाव, भटक जाना समेत कई अन्य लक्षण धीरे-धीरे उभरने लगते हैं।

मनोभ्रंश प्रभावित व्यक्तियों और उनके परिवारों दोनों के लिए तब एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है, जब मनोभ्रंश से पीड़ित किसी प्रियजन खासकर आपके माता पिता जिन्होंने आपको अपने खून से सींचकर समाज में सम्मानीय स्थिति तक पहुँचाया हो और आप उनकी देखभाल करने में खुद को असहाय महसूस कर रहे हों। क्योंकि इस बीमारी का कोई इलाज आजतक संभव नहीं हो सका है। हाँ उचित पारिवारिक देखभाल और सही दवा से उनकी स्थिति को बदतर होने से बचाया जा सकता है। उनकी देखभाल करने में आपके धैर्य, समझ और ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण आपके प्रेमभरी भावना की आवश्यकता तो होती ही है इसके साथ-साथ इन गुणों का टेस्ट भी होता है।

डिमेंशिया के रोगी का सही देखभाल

डिमेंशिया प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग तरह से प्रकट हो सकता है, लेकिन सामान्य लक्षणों में स्मृति का गायब हो जाना, अपने मनोभावों को सम्प्रेषित करने में कठिनाई, भ्रम की स्थिति में होना और व्यवहार में बदलाव शामिल हैं। इन संकेतों को जल्दी पहचानने से समय पर निदान और बचाव में सहायता मिल सकती है।

  • स्मरण शक्ति का लॉस होना: इससे प्रभावित व्यक्तियों में चीजों का भूल जाना आम हो जाता है। कभी-कभी उन्हें पुरानी चीजें याद रहती है मगर अभी हाल ही में या तत्काल घटी घटनाओं को भूल जाते हैं। किसी पुराने मित्र और परिजन को पहचान लेते हैं पर अभी खाया या पीया भूल जाते हैं। अलग-अलग मरीजों में मेमोरी लॉस के अलग-अलग ढंग हो सकते हैं।
  • सोचने में कठिनाई होना: मनोभ्रंश से पीड़ित व्यक्तियों के सोचने समझने की शक्ति समाप्त जाती है। उन्हें कहाँ जाना है, क्या करना है, क्या बोलना है इत्यादि स्पष्ट नहीं रह जाता है।
  • छोटी-छोटी समस्याओं को भी न सुलझा पाना: डिमेंशिया से पीड़ित मनोरोगी के लिए साधारण से साधारण काम करना या सुलझा पाना असंभव सा हो जाता है। उनके लिए अपने दैनिक जीवन के कार्य भी कठिनतम कार्य हो जाते हैं।
  • भटक जाना: मनोभ्रंश के रोगी का प्रारंभिक लक्षण है भटक जाना। अगर आपके परिजन कहीं परिचित जगह आपके साथ गए हों और उन्हें अपने निश्चित जगह तक पहुँचने में परेशानी हो रही हो तो ठीक उसी समय मानसिक डॉक्टर से संपर्क करें।
  • कैलकुलेशन करने में दिक्कत होना: ये भी इस प्रकार के रोगी के प्रारंभिक लक्षण है। अगर आपके उम्रदराज परिजन को गिनती करने, जोड़ने, घटाने इत्यादि में समस्या आने लगे तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
  • व्यक्तित्व में बदलाव: जब आपके परिवार के किसी सदस्यों का व्यवहार में कुछ नेगेटिव बदलाव दिखने लगे जैसे कि आक्रमकता, क्रोध में वृद्धि, गाली बकना इत्यादि तो ये डिमेंशिया के लक्षण हो सकते हैं।
  • भाषा और ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत का होना: अगर आपके परिजन में भाषा सम्बंधित दिक्कत आने लगे या उनके ध्यान में अत्यधिक भटकाव आने तो ये मनोभ्रंश के लक्षण हो सकते हैं।
  • भावनाओं में बदलाव आना: अगर व्यक्ति के भावनाएं कभी-कभी काफी तीव्र होने लगे या उदासी पकड़ने लगे तो यह मनोभ्रंश के लक्षण हो सकते हैं।

इसके लक्षणों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए इसे तीन चरणों में विभाजित कर स्थिति पर नजर रखी जा सकती है। प्रारंभिक चरण में व्यक्ति के व्यवहार में साधारण से बदलाव आने शुरू होते हैं, धीरे-धीरे यह गंभीर रूप लेने लगता है। अगर प्रारंभिक चरण में इसपर ध्यान नहीं दिया जाय तो डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।

नोट: मेमोरी लॉस के कई कारण हो सकते हैं। हर मेमोरी लॉस जरुरी नहीं कि अल्जाइमर या डिमेंशिया ही हो।

डिमेंशिया कई प्रकार के हो सकते हैं, जिनमें अल्जाइमर रोग, वैस्कुलर मनोभ्रंश, लेवी बॉडी मनोभ्रंश और फ्रंटोटेम्पोरल मनोभ्रंश शामिल हैं। प्रत्येक प्रकार के मनोभ्रंश के लक्षणों और उसके बदलाव का अपना सेट होता है। जिससे उस ख़ास सिम्पटम्स की देखभाल के लिए खास दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

अल्जाइमर रोग:

डिमेंशिया से पीड़ित करीब 60-80% बुजुर्गों में अल्जाइमर की बीमारी पायी जाती है। अल्जाइमर की बीमारी में मानसिक कार्यकलाप में धीरे-धीरे समस्या आनी शुरू होने लगती है, जो कि मस्तिष्क के ऊतक के नष्ट होने से होता है, जिसमें तंत्रिका कोशिकाएं टूटने लगती हैं, बीटा-एमाइलॉइड नामक एक असामान्य प्रोटीन का इकठ्ठा होना और न्यूरोफ़ाइब्रिलरी गुत्थियों का विकसित होने से अल्जाइमर रोग उत्पन्न होता है। डिमेंशिया का सबसे आम प्रकार में अल्जाइमर रोग है। इससे पीड़ित व्यक्ति में मस्तिष्क का आकार घटने लगता है।

पार्किंसंस रोग:

मस्तिष्क के तंत्रिका तंतु के क्षरण से यह बीमारी उत्पन्न लेती है। मस्तिष्क के बारीक उत्तक और कोशिका जब टूटने लगते हैं तो मस्तिष्क की सूचनाएं उचित स्थान पर नहीं पहुँच पाती है जिससे बार-बार गिरने का डर, शरीर में कम्पन होने लगती है। इनमे अन्य मनोरोगों के लक्षण समाहित होने से आगे चलकर डिमेंशिया में बदल जाती है।

फ्रंटोटेमपोरल डिमेंशिया:

इसमें पीड़ित खुद को शर्मिंदा कर सकते हैं या अनुचित व्यवहार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कर सकता है और घर या कार्यस्थल पर जिम्मेदारियों की उपेक्षा कर सकता है। बोलने या समझने या भाषा कौशल में भी समस्या हो सकती है। यह अक्सर 45 से 64 वर्ष की आयु के लोगों में होता है। सभी मनोभ्रंशों में से 5%-6% के बीच यही होता है।

यह डिमेंशिया आपके ललाट और टेम्पोरल लोब को नुकसान पहुंचाता है। यह सामान्यतया व्यक्तित्व और व्यवहार में परिवर्तन का कारण होता है। इसमें भाषा समझने या बोलने में भी कठिनाई होती है। पिक रोग और प्रगतिशील सुपरन्यूक्लियर पाल्सी सहित कई अन्य परिस्थितियों के कारण फ्रंटोटेमपोरल डिमेंशिया हो सकता है। इस प्रकार का मनोभ्रंश मस्तिष्क के व्यक्तित्व और व्यवहार वाले क्षेत्र में परिवर्तन लाता है।

लेवी बॉडीज डिमेंशिया:

यह कोर्टेक्स में प्रोटीन “alpha-synuclein” के एकत्र होने के कारण होता है। याददाश्त में कमी और भ्रम के अलावा कुछ अन्य स्थिति भी पैदा कर सकता है, जैसे कि नींद में बदलाव, वहम, असंतुलन, अन्य दैनिक जीवन के अन्य गतिविधियों में कठिनाई, मेमोरी लॉस, कठोरता या कंपकंपी जैसी गति या बार-बार गिरने का डर इत्यादि। कई लोगों को दिन में नींद आना, भ्रम होना या घूरना इत्यादि बदलाव का भी अनुभव होता है। उन्हें रात में सोने में भी परेशानी हो सकती है एवं लोगों, वस्तुओं या आकृतियों को देखना जो वास्तव में वहां नहीं हैं, का अनुभव हो सकता है।

मिश्रित डिमेंशिया:

व्यक्ति को एक ही समय में अल्जाइमर और वैस्कुलर डिमेंशिया दोनों हो सकता है। इसमें अन्य प्रकार के डिमेंशिया के लक्षण नजर आ सकते हैं। यह डिमेंशिया 80 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में सबसे ज्यादा पायी जाती है। इसका निदान कठिन हो जाता है क्योंकि अलग-अलग मनोभ्रंश के लक्षण एक साथ मिलकर डॉक्टर को और भी कन्फ्यूज्ड कर देते हैं।

संवहनी मनोभ्रंश:

लगभग 10 प्रतिशत मनोभ्रंश के मामले मस्तिष्क के स्ट्रोक या रक्त के प्रवाह में आयी दिक्कत से होते हैं। मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हाई कोलेस्ट्रॉल भी मनोभ्रंश को बढ़ाते हैं। मस्तिष्क के प्रभावित क्षेत्र और आकार के आधार पर लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं। जब व्यक्ति को अधिक स्ट्रोक या मिनी-स्ट्रोक आने शुरू होते हैं तब लक्षण अचानक ख़राब होने लगते हैं। यह मनोभ्रंश का दूसरा सबसे आम प्रकार है, जो आपके मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं को अवरुद्ध और क्षतिग्रस्त कर देता है । लक्षणों में स्मृति समस्याएं, भ्रम और ध्यान केंद्रित करने जैसे मामले शामिल हैं। आमतौर पर मनोभ्रंश से पीड़ित लगभग 15% से 25% लोगों को संवहनी मनोभ्रंश होता है।

ऊपर में बताये गए सभी प्रकार के मनोभ्रंश चाहे अल्ज़ाइमर व् पार्किंसंस रोग हो या संवहनी मनोभ्रंश हो, सभी इसके कारण हैं। डिमेंशिया कोई एक रोग नहीं बल्कि कई मानसिक रोगों का एक साथ प्रकट होना ही इसको परिभाषित करता है। Dementia में DE मतलब NO और Mentia मतलब Mind होता है। इसका मतलब नो माइंड है। और जब भी ऊपर बताये गए प्रकार से नो माइंड की स्थिति खड़ी होती है तो इसे डिमेंशिया कहते हैं और अल्ज़ाइमर इसमें सबसे आम है।

डिमेंशिया आमतौर पर सेरेब्रल कॉर्टेक्स में गड़बड़ी के कारण होता है, जो मस्तिष्क के बीचोबीच वह स्थान है जहाँ से इंसान विचार करने, निर्णय लेने और व्यक्तित्व को बनाये रखने का भी काम करता है। इसके अतिरिक्त मनोभ्रंश के कई अन्य वजहें भी हैं। जो इस प्रकार हैं-

हटिंगटन रोग:

मस्तिष्क का एक दोषपूर्ण जीन तंत्रिका तंत्र को तोड़ने लगता है। जिससे शरीर पर नियंत्रण, सोचने समझने की शक्ति, व्यक्तित्व में बदलाव, स्मरण शक्ति का ह्रास होने लगता है।

जैकब रोग:

यह दुर्लभ संक्रमण है यह 10 लाख लोगों में 1 व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसमें प्रिओन नामक एक असामान्य प्रोटीन आपस में चिपकने लगते हैं और मस्तिष्क के कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है। इसके लक्षणों में सोच, स्मृति, संचार, योजना, निर्णय, भ्रम, व्यवहार में परिवर्तन और अवसाद की समस्याएं हो सकती हैं।

वर्निक-कोर्साकॉफ सिंड्रोम:

मस्तिष्क का यह विकार थायमिन (विटामिन बी1) की कमी के कारण होता है। इसके परिणामस्वरूप आपके मस्तिष्क के स्मृति वाले क्षेत्रों में रक्तस्राव हो जाता है। यह अत्यधिक शराब, कुपोषण, और दीर्घकालिक संक्रमण के कारण पैदा होता है। इसके लक्षणों में दोहरी दृष्टि, मांसपेशियों में असंतुलन, चीजों को याद रखने, जानकारी को संसोधित करने और नए चीजों को सिखने में दिक्कत होने लगती है।

अगर आपको जीवन कभी मस्तिष्क में चोट लगी हो या फिर आप ऐसे क्षेत्र से जुड़े हों जिसमे आपको बार-बार माथे में चोट सहना पड़ा हो जैसे कि फुलबॉल खिलाडियों, मुक्केबाजों, सैनिकों के साथ अक्सर होता है; वैसी स्थिति में आपको मनोभ्रंश के लक्षण, जो वर्षों बाद दिखाई देते हैं, उनमें स्मृति हानि, व्यवहार या मनोदशा में बदलाव, अस्पष्ट वाणी और सिरदर्द हो सकते हैं।

सामान्य दबाव हीड्रोसिफलास:

जिन लोगों में मनोभ्रंश पाया जाता है, उनके मस्तिष्क में दबाव बढ़ने लगता है चाहे वजहें कोई भी हो। जब मस्तिष्क में CSF नामक द्रव्य बढ़ जायँ या मस्तिष्क में चोट, रक्स्राव, संक्रमण हो जाय या फिर मस्तिष्क का ऑपरेशन हुआ हो तो मनोभ्रंश की स्थिति खड़ी हो सकती है। ऐसे में पीड़ित को खराब संतुलन, भूलने की बीमारी, ध्यान देने में परेशानी, मूड में बदलाव, बार-बार गिरना और मूत्राशय पर नियंत्रण खोना जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। डॉक्टरों द्वारा शंट (ट्यूब) के सर्जिकल प्लेसमेंट के माध्यम से अतिरिक्त तरल पदार्थ निकाल कर इलाज किया जा सकता है।

दवाई के साइड-इफ़ेक्ट:

अगर आप विभिन्न प्रकार के दवाओं जैसे कि नींद की गोलियां, अवसाद की गोलियां, मादक पदार्थ निवारक गोलियां आदि का सेवन कर रहे हों और आपमें मनोभ्रंश के लक्षण नजर आने लगें हों तो अपने डॉक्टर को अपने दवा को बदलने के लिए कहें।

संक्रमण:

कुछ ऐसे संक्रमण हैं जिसमे डिमेंशिया के लक्षण जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। जैसे कि HIV, सिफलिस, लाइम रोग, बुजुर्गों में मूत्र पथ के संक्रमण, फेफड़ों के संक्रमण, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के संक्रमण, कवक, बैक्टीरिया और परजीवियों द्वारा मस्तिष्क के संक्रमण इत्यादि।

चयापचय और अंतःस्रावी स्थितियां:

कुछ ऐसी स्थितियां जिसमे मनोभ्रंश के लक्षण नजर आने लगते हैं जैसे कि एडिसन रोग, निम्न रक्त शर्करा का स्तर, भारी धातुओं (जैसे आर्सेनिक या पारा) के संपर्क में आना से, उच्च कैल्शियम स्तर के कारण, लिवर सिरोसिस, और थायराइड के कारण।

विटामिन की कमी:

आहार में पर्याप्त मात्रा में विटामिन बी1, बी6, बी12, कॉपर और विटामिन E न मिलने से इस रोग के लक्षण उभरने लगते हैं। बुर्जुर्गों को पोषक आहार का विशेष ख्याल रखना चाहिए।

ब्रेन ट्यूमर:

ब्रेन ट्यूमर भी कई बार मनोभ्रंश के लक्षण को ला सकता है।

डिमेंशिया एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमे पीड़ित व्यक्ति, रोग के अंतिम दौर आते-आते पूर्णरूपेण अपने परिवार और परिजन पर निर्भर हो जाते हैं। उनका हरेक कार्य में दूसरे की आवश्यकता पड़ जाती है। दैनिक कार्य जैसे मल-मूत्र त्यागना, खाना-पीना, उठना-बैठना तक, परिवार के किसी सदस्य के निगरानी में करना पड़ता है। इसलिए इसमें परिवार की भूमिका बहुत ही अहम् हो जाती है। परिवार के सदस्यों का अपना खुद का जीवन भी बोझिल और भारी हो जाता है।

मनोभ्रंश रोगियों की भलाई और जीवन की गुणवत्ता में परिवार के समर्थन का मूल्य अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भावनात्मक आश्वासन से लेकर व्यावहारिक सहायता तक, परिवार के सदस्यों का समर्थन और देखभाल उस औषधि की तरह है जिसे डॉक्टर्स चाह कर भी दे नहीं सकता है। पीड़ित व्यकित से परिजनों का प्रेमपूर्ण सम्बन्ध और भावनात्मक लगाव डिमेंशिया के रोगी के लिए जीने का मजबूत सहारा बन सकता है।

कभी-कभी मनोभ्रंश से पीड़ित व्यक्ति कई वर्षों तक उसी हाल में जीवित रहते हैं। चूँकि उनके पास दिमाग नहीं होता है इसलिए वे परिवार के ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी (बोझ) बन जाते हैं। परिजनों की हर स्थिति चाहे भावनात्मक हो या आर्थिक हो या फिर स्वतंत्र जीने की हो हर प्रकार से खुद को एक जाल में फंसा हुआ मानने को मजबूर हो जाते हैं। यहाँ हम हरेक पहलु को गहनता से देखने का प्रयास करेंगे।

भावनात्मक सहायता:

उनके किये गए उपकार को याद करें: डिमेंशिया से पीड़ित आपके माता-पिता या अन्य कोई नजदीकी व्यक्ति हो सकता है जिसके साथ आपके रिलेशन बहुत ही गहरा रहा हो। वे व्यक्ति जिन्होंने आपको जीवन के हर ख़ुशी प्रदान करने का प्रयास किया हो। उनके लिए आपके मन में बहुत ही आदर रहा हो, परन्तु कुछ वर्षों बाद उनकी सेवा करते-करते आप खिन्न और परेशान हो जाते हैं। कई बार उनकी वास्तविक जीवन के कष्ट और कठिनाईओं की स्थिति और आपको हो रहे परेशानियों को देखकर, आपके मन में उनकी मुक्ति का भाव आने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसे में देखभालकर्ता, दोस्तों और परिवार के सदस्यों को धैर्य और हिम्मत से काम लेना चाहिए।

खुद को उनकी जगह रखकर देखें: सोचिये अगर आपको ही डिमेंशिया हो गया हो और आपके परिजन ही आपके साथ वैसे ही व्यवहार करने लगें जैसा आप बिलकुल भी नहीं चाहते हैं तो आप क्या करेंगे? आप अपने अंदर संवेदनशीलता लाने का प्रयास करें। आप डिमेंशिया पेशेंट के साथ वैसा ही वर्ताव करें जैसा आप दूसरे से इच्छा रखते हैं कि वे आपके साथ करे।

उनकी भावना को समझने का प्रयास करें: आपको व्यक्ति केंद्रित होना चाहिए। डिमेंशिया पेशेंट को एक व्यक्ति के रूप में महत्व दें। आपकी सहायता इस रूप में होना चाहिए कि उनकी जरूरतों की पूर्ति के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भलाई भी हो सके। इस बात पर फोकस करना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभी जीवन में उनके पास क्या कुछ करने लायक है ना कि उन्होंने क्या अपने जीवन में खोया है। डेमेंशिया के रोगी के फीलिंग को समझाना ज्यादा महत्वपूर्ण है न कि उन्हें क्या कुछ याद है।

उनके अंदर फिर से विश्वास बहाल करने का प्रयास करें: मनोभ्रंश के साथ रहना रोगियों के लिए भावनात्मक रूप से बहुत ही कठिन हो जाता है, उनके मन में निराशा, हतासा, चिंता और अलग-थलग की भावनाएँ पैदा होने लगती हैं। परिवार के सदस्यों को चाहिए कि उन्हें अपनापन का फीलिंग दे सकें। सहानुभूति और अपनेपन की भावना प्रदान कर उनके जीवन में विश्वास को पुनः बहाल किया जा सकता है।

व्यावहारिक सहायता:

रोगी को अपने पैरों पर खड़े होने में सहायता करें: डिमेंशिया अक्सर व्यक्ति की दैनिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से करने की क्षमता को बुरी तरह ख़राब कर देता है और वे दूसरे पर आश्रित होना ज्यादा पसंद करने लगते हैं। परिवार के सदस्यों को चाहिए कि छोटे-छोटे कार्य वे आपकी सहायता से करें जैसे कि दवाई लेना, स्नान करना, भोजन करना, कई अन्य छोटे-मोटे कार्य हैं। वे इन कार्यों को खुद करें और आप एक सहायक की भूमिका में हों। ध्यान रहे रोगी पर ज्यादा बोझ न पड़े। उनकी स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास करें। डिमेंशिया पेशेंट और उसके देखभाल करने वाले सही दिशा में कैसे बढ़ें।

एक सुनिश्चित दिनचर्या का अवश्य पालन करें: डिमेंशिया पेशेंट और देखभाल कर्ता का जीवन सरल, व्यावहारिक और पूर्वानुमानित बनाने के लिए एक सुनिश्चित रूटीन पर चलना अतिआवश्यक हो जाता है। पेशेंट के सोने और जागने के समय का सुनिश्चित होना जरुरी हो जाता है; नहीं तो उन्हें पता ही नहीं चलता है कि कब दिन हुआ और कब रात हुयी। वे भ्रम में पड़े रहते हैं और देखभालकर्ता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। इसलिए पेशेंट को समय पर सोने और जागने का उपाय करें।

मनोभ्रंश से पीड़ित पेशेंट एक परिचित रुटीन को फॉलो करना ज्यादा पसंद करते हैं। दैनिक गतिविधियों में बदलाव से उन्हें कठिनाई महसूस होती है। इसलिए उनका स्वछता, भोजन का समय, दवाई का समय, समस्त दैनिक कार्य का एक निश्चित टाइम फिक्स्ड करें। और अगर उनके रूटीन में बदलाव करना हो तो उन्हें लगातार लिखित और मौखिक सुझाव देते रहें।

डिमेंशिया पीड़ित के दैनिक देखभाल के लिए टिप्स (Daily tips for Dementia Patient in Hindi):

दैनिक कार्यों जैसे कि नहाना, कपडे पहनाना, टॉयलेट जाना, खाना खिलाना जैसे कार्यों को करके देखभालकर्ता की हालत पस्त हो जाती है। उनके अंदर झुंझलाहट का उठना स्वाभविक है। ऐसे में एक पेशेंट के हिसाब से तैयार किया गया दिनचर्या कारगर हो सकता है। यहाँ बताये गए टिप्स सरल सहायक हो सकते हैं।

  • प्रत्येक दिन एक ही समय पर पेशेंट से सम्बंधित कार्य को करे।
  • रोगी के कार्यों को नोटबुक में, कलैंडर में, लिखकर उनके टेबल के आसपास रखें ताकि उन्हें याद रहे।
  • भोजन एक सही, परिचित स्थान पर परोसें और मरीज को खाने के लिए पर्याप्त समय दें।
  • प्रत्येक दिन निश्चित समय पर खुछ मजेदार क्रियाकलाप को शामिल करें और ठीक उसी समय पर करें ताकि पेशेंट को उस समय का इन्तजार हो।
  • पेशेंट के प्रति उदार और आदरयुक्त रहें और उन्हें बताये कि अब आपको नहाया जायेगा, अब आपको कपडा पहनाया जा रहा है आदि-आदि।
  • रोगी के लिए ढीले-ढाले, आरामदायक, उपयोग में आसान कपड़े खरीदें, जैसे लोचदार कमरबंद वाले कपड़े, कपड़े में बटन न हों, बड़े ज़िपर वाले कपड़े आदि।
  • जब मनोरोगी नहाये तब उन्हें हर काम अपने से करने दें और जरुरत पड़े तो सहायता करें।
  • दवाई के लिए मोबाइल में रिमाइंडर सेट कर लें और कभी मत चुकें।

डिमेंशिया के पेशेंट से किस तरह से बातचीत और व्यवहार करें? (How to communicate with dementia Patient?)

मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों के लिए बातचीत करना कठिन हो जाता है। उन्हें चीजों को याद रखने में परेशानी होती है। वे उत्तेजित, क्रोधित और चिंतित भी होते रहते हैं। मनोभ्रंश के कुछ रूपों में, भाषा की क्षमताएं इस तरह प्रभावित होती हैं कि लोगों को सही शब्द ढूंढने में परेशानी होती है या बोलने में कठिनाई होती है। ऐसे में देखभालकर्ता को काफी परेशानी महसूस होती है। संचार को आसान बनाने में मदद के लिए, आप यह कर सकते हैं:

  • पेशेंट के बातों को बड़ी ही ध्यानपूर्वक सुनें, उन्हें ऐसा लगे कि आप उनकी बातों पर ध्यान दे रहे हैं। उनके गुस्से और झुंझलाहट को समझने का प्रयास करें।
  • वे जिस भांति अपने जीवन को कण्ट्रोल करना चाहते हैं करने दें। उनका पर्सनल लाइफ है इस बात का भी ध्यान रखें और उन्हें संभव मनचाहा जीवन जीने में मदत करें।
  • यदि व्यक्ति को याद नहीं है तो बहुत ही शांतिपूर्वक ढंग से उसे याद दिलाएं कि आप कौन हैं।
  • कोशिस करें कि वो आपके साथ वार्तालाप कर सकें और इसके लिए उन्हें प्रेरित करें।
  • यदि आपको शब्दों के साथ संवाद करने में परेशानी हो रही है, तो किसी परिचित किताब दिखाकर या फोटो एलबम जैसी गतिविधि से पेशेंट का ध्यान भटकाने का प्रयास करें।
  • मनोरोगी को अधिक सुरक्षित महसूस कराने के लिए घर में अच्छी तरह से पसंद की जाने वाली वस्तुएं और तस्वीरें रखें।

डिमेंशिया मनोरोगियों के लिए स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली की विधियां: (Active and Healthy Life of Dementia)

  • डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति किसी भी कार्य को करने में रूचि नहीं लेते हैं। ऐसे में उन विभिन्न गतिविधियों पर विचार करें जो मनोरोगी को सक्रिय रहने के लिए प्रेरित करता हो जैसे घरेलू काम, व्यायाम और बागवानी इत्यादि।
  • रोगी को विकल्प दें कि उसे क्या खाना चाहिए; पसंदीदा खाना उन्हें सक्रिय रखने में मदतगार साबित हो सकता है।
  • हर दिन एक साथ टहलें। देखभाल करने वालों के लिए भी व्यायाम अच्छा है।
  • किसी बड़े वर्कआउट की जगह ऐसे छोटे-छोटे वर्कआउट चुनें जिस करने में रोगी अपने रूचि दिखाए।
  • ऐसे खाद्य पदार्थ को रोगी के जीवन में शामिल करें जो उनको भरपूर एनर्जी दे और उनके लिए हर दृष्टिकोण से स्वास्थ्यवर्धक साबित हो जैसे कि पहले से तैयार सलाद, प्रोटीन युक्त हरी सब्जियाँ, फल इत्यादि।
  • रोगी को प्रेरित करने के लिए व्यायाम में संगीत को जोड़ें। यदि संभव हो तो संगीत पर नृत्य भी करवाएँ।
  • डिमेंशिया के रोगी के लिए उनके हिसाब से कुछ नए मनोरंजक एक्टिविटी को शामिल करें और उसमें आप भी भाग लें, उनको प्रेरित भी करें।

डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के लिए घरेलु सुरक्षा के टिप्स (Home safety tips for dementia’s patient):

मनोभ्रंश से पीड़ित व्यक्ति धीरे-धीरे अपने होशोहवास को खोने लगते हैं। उन्हें अपने अच्छे-बुरे का पता ही नहीं चलता इसलिए आपको चाहिए के घर में या घर के आसपास कोई भी ऐसा सामान नहीं रखें जिससे रोगी अपने आपको चोट पहुंचा लें। खतरों को दूर करने और घर के आसपास सुरक्षा सुविधाओं को जोड़ने से व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से और सुरक्षित घूमने की अधिक स्वतंत्रता मिल सकती है।

  • डिमेंशिया के पेशेंट को आखिर में चलना-फिरना भी मुश्किल हो जाता है। अगर उनमे पार्किन्सस के लक्षण भी नजर आने लगे तो उन्हें गिरने का भाव बना रहता है। कई बार वो गिर भी जाते हैं। ऐसे में सीढ़ियों में रेलिंग, बाथरूम तक जाने के लिए पकड़ कर चलने की सुविधा हो। सीढ़ियों पर कालीन या सुरक्षा पकड़ पट्टियाँ रखें, या सीढ़ियों के किनारों को चमकीले रंग के टेप से चिह्नित करें ताकि वे अधिक दिखाई दें।
  • इलेक्ट्रिक उपकरणों, प्लग इत्यादि को रोगी के हिसाब से सुरक्षित करवाएं ताकि इससे होने वाली संभावित खतरे को टाला जा सके।
  • खतरनाक पदार्थो से बचने के लिए जो उपाय आप बच्चों के लिए करते हैं वही उपाय आप मनोभ्रंश से पीड़ित मनोरोगियों के लिए भी करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के रोगी और बच्चे दोनों एक सामान हो जाते हैं।
  • कन्फूजन पैदा करने वाले हर प्रकार के चीजें अपने घर से हटा दें जिससे रोगी भमित होते हों। सिंपल और सरल चीजों को रोगी के पास रखें।
  • सुनिश्चित करें कि जिन कमरों और बाहरी क्षेत्रों में व्यक्ति जाता है, वहां अच्छी रोशनी की व्यवस्था हो।

देखभालकर्ता अपना ख्याल कैसे रखें? How to take care of yourself as a caregiver of a dementia patient?

डिमेंशिया रोगी की देखभाल करने वाले व्यक्ति और परिवार के सदस्यों को हर तरह से परेशानी झेलना पड़ता है। कभी-कभी उनका व्यक्तिगत लाइफ इतना प्रभावित हो जाता है कि केयरटेकर डिप्रेशन तक के शिकार हो जाते हैं क्योकि दिनभर उन्हें मनोभ्रंश के रोगी के लिए देना पड़ता है और खुद के ऊपर ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे में नीचे बताये गए टिप्स काम के हो सकते हैं: देखभालकर्ता अपने चिड़चिड़ेपन और बेचैनी को इस तरह ठीक कर सकते हैं।

  • मनोभ्रंश के रोगी की देखभाल के लिए परिवार के सभी सदस्यों को थोड़ा-थोड़ा मदत करना चाहिए न कि एक ही व्यक्ति पर पूरी तरह छोड़ देना चाहिए। अगर जरुरत पड़े तो आसपास के अन्य उपलब्ध सेवाओं का पता लगाकर उनसे मदत लेने का प्रयास करना चाहिए।
  • पर्याप्त नींद और अच्छे पौष्टिक आहार देखभाल कर्ता को एक्टिव एवं सेवा के योग्य बनाये रख सकते हैं।
  • मनोरोगियों के बढ़ते संख्या को ध्यान में रखकर कई ऑनलाइन और व्यक्तिगत सहायता समूह बनाकर देखभालकर्ता स्वयं एवं रोगियों के सम्बन्ध में समस्याओं और सूचनाओं का आदान-प्रदान कर एक अमूल्य सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
  • दोस्तों और परिजनों को चाय पर बुलाएँ जिससे आपके और मनोभ्रंश के रोगियों का मनोरंजन के साथ-साथ मोटिवेशन भी हो सकेगा।
  • जितनी बार संभव हो सके व्यायाम, ध्यान और योग करने का प्रयास करें। सुबह-शाम टहलने को जायँ।
  • जीवन में ध्यान का बहुत ही बड़ा महत्व है। सबसे जरुरी है इसे सही से समझना और पूरी सिद्दत से करना। अगर आप ध्यान के आदि हो गए तो आपको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
  • डिमेंशिया के देखभाल कर्ता परेशान और उलझन से भरे होते हैं, उन्हें ऐसी हालत में विशेषज्ञों और प्रोफेशनल की सहायता आवश्यक हो जाता है। डॉक्टर्स, योगाचार्य जैसे विशेषज्ञ बहुत ही मदतगार हो सकते हैं।

डिमेंशिया के रोगी का सही देखभाल: परिवार की सहायता का महत्व पर हमारे इस लेख से हमें यह समझ मिलता है कि इस संघर्षशील समय में एक डिमेंशिया के मरीज का सही संभाल कैसे किया जाए। परिवार की सहायता का अहम् महत्व समझना और इसमें अग्रणी भूमिका निभाना बहुत महत्वपूर्ण है। परिवार के हर सदस्य को इस रोग की गंभीरता और देखभाल कर्ता के उलझनों और परेशानियों को समझने की दरकार है।

इसके अलावा अपने आप को समय-समय पर देखभाल करना और समर्थक समूहों से जुड़ना बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। इस तरह के एक संवेदनशील और सामाजिक दायरे में, हम डिमेंशिया के मरीजों के जीवन में प्रेरणादायक बदलाव परिवार की मदत से ला सकते हैं। इस प्रकार, परिवार की सहायता डिमेंशिया के मरीजों के लिए आवश्यक और अविवादित है। इसे समझने, समर्थन करने और अनुभव करने का समय है, ताकि हम इस आंतरिक यात्रा में अपने प्रियजनों के साथ अधिक सहयोग दे सकेंगे।

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