क्रोध और बेचैनी से बचने के 10 प्रैक्टिकल उपाय

भूमिका

क्रोध, चिंता, ईर्ष्या, द्वेष, अशांति आधुनिक जीवन शैली की उपज है या यही हमारी नियति है ? क्या इन वृतियों से कभी मुक्ति संभव है या इन्ही के साथ ताउम्र जीना पड़ेगा ? क्या जीवन में भागम-भाग बनी ही रहेगी या किसी मोड़ पर शांति और आनंद से भी परिचय होगा ? क्रोध और बेचैनी से कैसे मुक्ति पाएं ? इन्ही सारी तमाम प्रश्नो का हल हम इस आलेख में ढूंढने का प्रयास करेंगे और इसके उत्पन्न होने के कारण की जाँच-परख  करेंगे।

सामान्यतया किसी भी प्रकार की बाहरी समस्या हो या किसी तरह की आंतरिक चिंता अथवा बेचैनी, सबका दोष हम दूसरों पर मढ़ देते हैं। क्या इन बाह्य और आंतरिक परेशनियों का कारण वाकई अन्य ही हैं या यह सिर्फ हमारी भ्रान्ति है? या फिर हमें इसकी परख ही नहीं है? इस लेख में जीवन से जुड़ी इन्ही सवालों को खंगालेंगे। इसके निचोड़ निकालने का प्रयास करेंगे। तथा इसके संभव समाधान की विस्तृत चर्चा कर क्रोध और बेचैनी से बचने के 10 प्रैक्टिकल उपाय ढूंढेंगे।

क्रोध, बेचैनी जैसी मनोवेगों का समाधान निश्चित ही मौजूद हैं; बस जरुरत है इन्हे समझने की; सही दिशा में खोज करने की। हम अपनी प्राचीन समृद्ध और उन्नत आध्यात्मिक विज्ञान भले ही भूल गए हों या उनपर मोटी धूल जम गयी हो परन्तु उसकी व्यवहारिकता को आज भी नाकारा नहीं जा सकता है। आप मानें या ना मानें भारत के ध्यान और योग का विज्ञान उस वक्त अपने चरमोत्कर्ष पर था जहाँ सभी समस्याओं का समाधान सहजता से आश्रमों में सिखाया जाता था। हम इस लेख में प्राचीन विज्ञान और आधुनिक खोजों के माध्यम से वर्तमान समस्याओं का व्याहारिक हल ढूंढने का प्रयास करंगे।

क्रोध और बेचैनी

बेचैनी क्या है?

बेचैनी क्या है और क्यों जन्म लेती है ? हमारे प्राचीन मनीषियों ने प्राचीन ग्रंथों में  तीन अवस्थाओं की चर्चा की है और मनुष्य को बीच वाली अवस्था में रखा है। प्रथम अवस्था पशु का बताया है जहाँ बेचैनी न के बराबर होती है और अंतिम अवस्था संतों और बुद्धों का बताया है ,जो कामनाओं से मुक्त होकर परम आनंद की अवस्था में आ जाते हैं। इसलिए वहां बेचैनी संभव ही नहीं है। रही बात बीच में मनुष्य की, जो न अब पशु हो सकता है और न ही महात्माओं की तरह कामनाओं से मुक्त होने की खोज करता है। जो आशंकाओं, कामनाओं, भविष्य की चिंताओं, महत्वाकांक्षाओं से सदा घिरा रहता है। आनंद और मस्ती  की तलाश में यहाँ-वहां डोलता रहता है, कुछ ढूंढता रहता है।

हमारे प्रज्ञावान ऋषियों का हमेशा से मानना रहा है कि मनुष्य की तलाश वस्तुतः परम सुख की तलाश है। यह परम आनंद की खोज है। हाँ! यह अलग बात है कि कोई इसे पद में ढूंढता है तो कोई धन में। कोई इसे शराब तो कोई शबाव में। मगर खोज हर इंसान की एक ही है और वह है परम मस्ती की। इस परम मस्ती को कोई परमात्मा नाम दिया है तो किसी ने अल्लाह कहकर पुकारा है। कोई गॉड कहा है तो कोई इस आनंद को ईश्वर नाम दिया है।

“हमारे प्रज्ञावान ऋषियों का मानना है कि मनुष्य की तलाश वस्तुतः परम सुख की तलाश है; परम आनंद की खोज है। हाँ! यह अलग बात है कि कोई इसे पद में ढूंढता है तो कोई धन में। और वह वहाँ मौजूद नहीं है जिस कारण बेचैनी पैदा होती है ।”

इन मनीषियों ने आगे  कहा है कि यह परम आनंद, मनुष्य का वास्तविक स्वाभाव है। मूलतः मनुष्य अपने स्वाभाव की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहा है। और यह भटकाव बेचैनी को जन्म देती है। और हम क्रोध और बेचैनी से बचने के 10 प्रैक्टिकल उपाय अपनाकर अपने इस वृति सुगम मार्ग ढूंढेंगे। 

आधुनिक विज्ञान बेचैनी और क्रोध से कैसे मुक्ति पाएं के उपाय के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों परिप्रेक्ष को संयुक्त रूप से जिम्मेवार मानता है। मनोवैज्ञानिकों ने थाइरोइड और निकोटिन को बेचैनी बढ़ाने वाले करक मानते हैं। उनका मानना है कि ब्लड प्रेशर और पर्याप्त नींद न लेना भी आपके अंदर व्याकुलता को बढ़ा देती है।

क्रोध क्या है ?

क्रोध हमारे अचेतन में छुपी ऐसी मानसिक वृति है जो हमारे रग-रेशे में व्याप्त हो गया है। यह मनोवेग इंसान में डीप रूटेड है। इसे समझने के लिए सवर्प्रथम हमें होशपूर्ण होना होगा। हमें इसका साक्षात्कार करना होगा। क्रोध जब होता है उस वक्त हम नहीं होते हैं। उस वक्त हम उबल रहे होते हैं। क्रोध की घटना जब गुजर चुकी होती है तब हम उस पर पछतावा कर रहे होते हैं। अगर हम क्रोध के दौरान मौजूद हो सकें तो फिर हम क्रोध कर ही नहीं सकेंगे। क्रोध बेहोशी का ही अंग है। हमें क्रोध का पता ही तब चल पाता है जब क्रोध आ भी चूका; जा भी चूका; उपद्रव हो भी चूका। जैसे-जैसे होश की गहनता बढ़ेगी तो हम उस वक्त भी क्रोध के प्रति सजग हो सकेंगे, जब गुस्से से हमारे मुट्ठियाँ भींच रही होंगी; जबड़े तन रहे होंगे। तब हमें याद आ जायेगा कि यह क्रोध है। यह हो रहा है। फिर होश कि गहराई बढ़ेगी तो क्रोध आने वाला है उससे पूर्व ही उसे देख लेंगे कि अब क्रोध आने वाला है।

अगर हम वास्तव में यह जानना चाहते हैं कि क्रोध क्या है तो हमें क्रोध और बेचैनी से बचने के 10 प्रैक्टिकल उपाय अपनाकर अपने होश और जागरूकता पर काम करना होगा। इससे पहले हम चाहें कितने ही कसमें खाएं, व्रत लें, नियम लें, आशीर्वाद लें। ये सब काम नहीं आएँगी बातें। ये सब बहाने हैं। हमें समझना होगा क्रोध से मुक्त होने की जिम्मेवारी हमारी है। तब हम इस दिशा में कदम उठा सकेंगे। क्रोध को जाना जाय तो इसका समन होता है, इसका दमन नहीं कर सकते हैं। क्रोध हमारे चित्त की एक विक्षिप्त अवस्था है। जिसमे हम पागल हो जाते  हैं। यह अस्थायी पागलपन है। इसका हम कैसे त्याग कर सकेंगे। यह हमारे भीतर से उठता है। और जब उठता है तो हम होते कहाँ हैं ।

हमारे मनोचिक्त्सक का मानना है कि क्रोध के दौरान हमारे अंदर के विष की ग्रंथियों का जहर हमारे खून में मिल जाता है और हम पर पागलपन सवार हो जाता है और हम अस्थायी रूप से पागल हो जाते हैं। फिर जो हम करते हैं वह पूरी तरह  बेहोशी में होता है।

इस सन्दर्भ में हमारे गुरु जी ने एक मनोरंजक कहानी बताते रहे हैं:- भोज में आये लोगों की सेवा-टहल करते हुए गांव की नाई छकौड़ी ने जब यह सुना कि इस बार की तीर्थ यात्रा में ठाकुर बैरिस्टर सिंह क्रोध का त्याग कर आये हैं तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। मित्रो, दोस्तों से घिरे बैठे गर्व से भरे ठाकुर साहब के पास पहुँच कर छकौड़ी ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक कहा ” मालिक इस बार की तीर्थ यात्रा में आप क्या त्याग कर आये हैं ? क्रोध! छकौड़ी, हमने अब जीवन भर के लिए क्रोध त्याग दिया है- सहज शांत वाणी में ठाकुर साहब ने कहा। धन्य हो! चारो धाम की यात्रा, चार गांव का भोज और क्रोध का त्याग। बड़े महात्मा हैं मालिक आप; कहता हुआ छकौड़ी अपने काम में जा लगा। थोड़ी देर बाद वह फिर लौटा। ठाकुर साहब को भोज की सुव्यवस्था की जानकारी दी और निहायत मुलामियत से बोला- ” इस बार तीर्थ यात्रा में हुजूर क्या त्याग कर आये ? ठाकुर साहब ने छकौड़ी की और सीधी आंख से देखते हुए सधी आवाज में जवाब दिया- क्रोध! मैं क्रोध छोड़ दिया। वाह ! वाह मालिक कितना बड़ा त्याग किया आपने; धन्य हैं आप। और वह फिर भोज स्थल की ओर चल दिया। कुछ ही क्षणों में छकौड़ी फिर लौटा। और इधर-उधर की बातें करता हुआ फिर बोला ठाकुर साहब से तीर्थों में इस बार आप क्या त्याग कर आये? नाई को घूरते हुए बोला- अभी तुझे बताया है कि हम क्रोध छोड़ आये हैं। हाँ मालिक धन्य हो धन्य हो। थोड़ी देर में फिर छकौड़ी आया और चुपचाप ठाकुर साहब का पाऊँ दबाने लगा फिर उठा और उनके पाऊँ छूते हुए बोला हुजूर- अबकी तीर्थ यात्रा में आपने कौन सा त्याग किया। इस बार ठाकुर साहब ने जैसे नाई का प्रश्न सुना उनकी ऑंखें लाल हो गयी। भौहें तिरछी हो गयी। कड़कदार आवाज में बोले- अबे नौये, दस बार तुझसे कहा है। हम क्रोध का त्याग कर आये हैं तू बहरा है क्या ? जी सरकार,! क्रोध का त्याग कर आपने बड़ा पुण्य का काम किया है।  बड़ा धन्य है आप। होठों- होठों में  मुस्कुराता हुआ छकौड़ी चला गया । अबकी बार वह थोड़े अधिक विलम्ब से वह लौटा। ठाकुर साहब यार दोस्तों के साथ बातों में मशगूल थे। चाँदी के गिलास में ठाकुर साहब को पानी पेश करते हुए छकौड़ी ने कहा कि हुजूर। छकौड़ी का स्वर सुनते ही ठाकुर साहब कि आँखे कपाल से जा लगी। भौंचक छकौड़ी थोड़ा पीछे खिसका। ठाकुर साहब ने अपना जूता उठाया और छकौड़ी भागा। आगे-आगे पानी का गिलास लिए छकौड़ी नाई और पीछे-पीछे हाँथ में जूता लिए हुए ठाकुर बैरिस्टर सिंह; साला छत्तीस्सा, कमीना, हमने पचास बार हरामी के पिल्ले से कहा कि हमने क्रोध छोड़ दिया फिर भी साला।

क्रोध छोड़ा नहीं जाता, क्रोध समझा जाता है। छोड़े कि ऐसी ही झंझट में पड़ेंगे आप। क्रोध को समझो, क्रोध के प्रति जागो। क्रोध को पहचानो। और पहले ही निर्णय मत ले लो कि क्रोध बुरा है। अगर निर्णय ले लिया तो जान नहीं सकेंगे। क्रोध को जानने के लिए निर्णय मुक्त मन चाहिए। अगर आपने नहीं जाना तो सब बेकार है। क्रोध को ऐसे देखो जैसे आकाश में उठते कोई बदल को देखता है। न अच्छा न बुरा। न पक्ष न विपक्ष । सिर्फ पहचानो कि क्रोध क्या है। धीरे-धीरे आँख खुलेगी। फिर आगे और सजगता गहराते जाएगी। फिर कोई गली देगा, अपमान करेगा। क्रोध कि स्थिति पैदा करेगा और आप जानोगे कि स्थिति मौजूद है। यह अगर हम मूर्छित हो जायेंगे तो क्रोध होगा और अगर होश का दीया जलता रहेगा तो क्रोध नहीं होगा। होश में क्रोध विषर्जित हो जाता है जैसे प्रकाश में अँधेरा नहीं होता है।

“क्रोध को ऐसे देखो जैसे आकाश में उठते कोई बदल को देखता है। न अच्छा न बुरा। न पक्ष न विपक्ष । सिर्फ पहचानो कि क्रोध क्या है। धीरे-धीरे आँख खुलेगी।”

क्रोध और बेचैनी हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के हानिकारक क्यों है ?

शारीरिक स्वास्थ्य:-

जब क्रोध जन्मता है तो हमारे ब्लड प्रेशर, ह्रदय गति और तनाव तीनों एकाएक सातवें आसमान पर होती है। यह हमारे पाचन प्रणाली को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है। हमारी भूख गायब हो जाती है। और अगर हम बार-बार क्रोध करते हैं तो यह हमें हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज, सिरदर्द, कब्ज की शिकायत, त्वचा सम्बन्धी बीमारी और पहले से मौजूद बीमारियों को बढ़ा देता है। अगर हम वास्तव में क्रोध और बेचैनी से मुक्ति पाना चाहते हैं तो हमें अपनी शारीरिक प्रणाली और इन वृतियों के साथ सामंजस्य बैठना सीखना होगा।

physical disease

मानसिक स्वास्थ्य:-

अगर आप क्रोध और बेचैनी से कैसे मुक्ति पाएं की तलाश में हैं तो आपको क्रोध और बेचैनी के स्वाभाव के अंदर जाना होगा क्योंकि क्रोध और बेचैनी अपने आप में कारण और परिणाम दोनों है। साथ ही दोनों एक दूसरे के पूरक भी है। इसे ऐसे समझते हैं। अगर आप लम्बे समय तक बेचैन रहेंगे तो आपको बार-बार गुस्सा भी आएगा। और अगर आप गुस्से के आदि हैं तो आपकी बेचैनी और बढ़ जाएगी। आपको पता ही नहीं चलेगा कि कौन है कारण और कौन है परिणाम। इसलिए ज्यादातर लोग इन वृतियों से बाहर ही नहीं निकल पाते हैं।

चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जब आप क्रोध करते हैं तो आपके शरीर में बहुत सारे विष-ग्रंथियाँ पैदा होने लगती है। वास्तव में यह हार्मोनल इम्बैलेंस है। और यह विष आपके खून में मिलकर आपके सारे खून को विषाक्त कर जाता है। फिर आप जो करते हैं उसमे आपका होश नहीं रहता है। भले ही यह क्षणिक होता है पर यह आपके शरीर पर गहरे प्रभाव छोड़ जाते हैं। आप अनिद्रा, सिरदर्द, दुनिया भर कि चिंताएं, डिप्रेशन, नकारात्मक भावनाएं आपको घेर लेती है। फिर आप सोचते हैं कि यह आया कहाँ से। अगर सच में क्रोध और बेचैनी से मुक्ति पाना हो तो कारण और परिणाम दोनों को एक जानो। इनकी जड़ें कहाँ छुपी है उसे  पहचानो।

चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जब आप क्रोध करते हैं तो आपके शरीर में बहुत सारे विष-ग्रंथियाँ पैदा होने लगती है। वास्तव में यह हार्मोनल इम्बैलेंस है। और यह विष आपके खून में मिलकर आपके सारे खून को विषाक्त कर जाता है।

क्रोध और बेचैनी के क्या कारण हैं ?

क्रोध और बेचैनी जैसे वृतियों के सुनिश्चित समाधान के लिए इसके कारणों अर्थात जड़ों का ईमानदारी से जाँच-परख करना पड़ेगा। सामान्यतया मानसिक मनोवेग दो कारणों से उत्पन्न लेती हुयी मालूम पड़ती है। पहला बाह्य कारण और दूसरा आंतरिक कारण। ज्यादातर लोगों को लगता है कि क्रोध, बेचैनी, चिंता आदि मनोवेगों की वजह दूसरे लोग हैं। अन्य लोगों के वजह से यह हमारे अंदर आता है। इनके जिम्मेदार दोस्त, दुश्मन, परिवार के अन्य सदस्य, पडोसी वगैरह हैं। हम यहाँ देखेंगे कौन सी वजह हमारे मन मस्तिष्क को ज्यादा प्रभावित करता है।

बाह्य कारण :-

पर्यावरणीय दबाव:-

शोर शराबा, भीड़-भाड़, कार्य का बोझ इत्यादि क्रोध बेचैनी और तनाव पैदा करने के कारण बन जाते हैं। जबकि कभी-कभी ऐसा होता है जब आपको लगता है कि कोई आपको शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाने का प्रयास कर रहा तब आपके भीतर भय व्याप्त हो जाता है जो आपके अंदर बेचैनी पैदा करता है।

काम का बोझ:-

जब आपके काम करने का कोई व्यवस्थित शेड्यूल नहीं होता है तब छोटे-छोटे काम भी आपके जीवनचर्या को अस्त-व्यस्त कर देता है। जिसे आप आसानी से  कर के निवृत हो जाते, उसमें आप फंसकर रह जाते हैं। और यह उलझाव आपके अंदर एक प्रकार का बेचैनी पैदा कर देता है जो आपके क्रोध को भी उकसाते रहता है, और आप जहाँ गुस्सा नहीं करना चाहिए वहां भी उबल पड़ते हैं।

कोई बुरा अनुभव:-

आपके साथ घटी हुयी कोई बुरा अनुभव जिसके बारे आप सोच कर उत्तेजित या ज्यादा संवेदनशील हो जाते  हैं। आपकी मुट्ठियां अपने-आप भींच जाती है। वह आपके  बेचैनी को बढ़ाएगा। वह आपके क्रोध को भी जगायेगा। वह आपको तनाव से भर देगा। इसलिए जितना हो सके इससे बचने का प्रयास करना चाहिए।

दुर्बलता:-

अगर आप शारीरिक रूप से कमजोर होंगे या फिर आपके हीमोग्लोविन का स्तर कम है। वैसी स्थिति में आपके अंदर चिड़चिड़ाहट की भावना प्रबल होने लगती है।

लाइफस्टाइल:-

भोजन में पोषक तत्वों की कमी, गतिहीन जीवन, आलस्य, व्यायाम से दुरी आपके जीवन के बुरे पहलुओं को ही बढ़ता है जो आपके अंदर बेचैनी, तनाव, क्रोध, चिड़चिड़ापन का कारण बनता है। इसलिए हमें इन पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

रोग-बीमारी:-

आपके अंदर के रोग आपके मन को काफी प्रभावित करते हैं। यानि शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य को आंदोलित करता है और आपके भीतर के बेचैनी और क्रोध को उकसाता है और आप न चाहते हुए भी इसका शिकार हो जाते हैं।

आतंरिक कारण :-

प्राचीन मनीषियों ने और आजकल कॉस्मिक केमिस्ट्री ने भी पुरे यूनिवर्स हो एक यूनिट माना है। उनका कहना है  सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए सब एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। एक का गुस्सा दूसरे में; दूसरे की बेचैनी तीसरे में; तीसरे की दया चौथे में; चौथे का प्रेम पांचवें में आते-जाते रहता है। मतलब आप सामने वाले से जाने-अनजाने भी प्रभावित होते रहते हैं,और इसका उपचार होश और जागरूकता से जीने में है।

व्यक्तित्व:-

प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है और उसी हिसाब से  उसकी सहनशीलता भी अलग-अलग होती है। कोई जल्दी गुस्से, बेचैनी और तनाव के शिकार हो जाते हैं तो कोई इन्ही परिस्थियों में सामान्य मनोदशा में रह पाने में खुद को सक्षम पाते हैं। फिर चाहे दोनों शारीरिक रूप से एक जैसे कद काठी के क्यों न हों। इस अंतर के पीछे मनुष्य की आतंरिक मनोदशा का अलग होना है। ये आपके क्रोध और बेचैनी के स्तर को कम या ज्यादा करने के कारण बनते हैं।

आपका अहंकार:-

किसी भी नकारात्मक वृतियों को सह देने वाला आपका अहंकार होता है। प्रज्ञावान पुरुषों ने अहंकार को सभी दुखों का एक मात्र कारण माना है। अगर ये न हो तो आपके अंदर किसी भी तरह की बुराई घुस ही नहीं सकती है। यह बहुत ही सूक्ष्म रूप में आपके पास मौजूद रहती है। जैसे- उसने मुझे ऐसा कहा; वो मेरे बारे में ऐसा सोचता है; अरे वो मुझसे अच्छा कार ले लिया; वो मुझसे लम्बी है या सुन्दर है। इस तरह की बातें आपके अंदर बेचैनी और क्रोध के निर्माण का मूल कारण बनती है।

किसी भी नकारात्मक वृतियों को सह देने वाला आपका अहंकार होता है। प्रज्ञावान पुरुषों ने अहंकार को सभी दुखों का एक मात्र कारण माना है।

क्रोध और बेचैनी से मुक्ति के प्रैक्टिकल उपाय:-

गहरी साँस-

साँस हमारी शरीर और आत्मा के बीच के मध्य सेतु का कार्य करती है। यह सेतु टूटते ही इंसान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जब सांसें ऊपर-ऊपर ही चले यानि हल्का-हल्का आये; तब इंसान के जीवन में विकृत मनोवेगों का प्रभाव बढ़ जाता है। आप गौर किये होंगे जब आप क्रोध, बेचैनी, ईर्ष्या, जलन की अवस्था में होते हैं तो आपकी सांसे उथली-उथली सी होती है। उसमे गहराई नहीं रह जाती है। इसलिए महर्षि पतंजलि ने हज़ारों साल पहले ही कहा था कि गहराई से ली गयी सांसें आपको बुरे मनोवृतियों से मुक्त करता है।

जब भी आप क्रोध जैसे मनोवेगों के गिरफ्त में हों तो आप 15 से 20 गहरी सांसें लें। और संभव हो सके तो अपनी आती-जाती सांसों को देखते भी रहें। इससे न केवल आपके क्रोध और बेचैनी गायब होंगे बल्कि आपको और भी अच्छे दूरगामी परिणाम मिलेंगे। शुरुआत में आपको गुस्से के वक्त ऐसा कर पाना संभव नहीं लगेगा पर धीरे-धीरे आप इसका आदत बनायें।

“साँस हमारी शरीर और आत्मा के बीच के मध्य सेतु का कार्य करती है। यह सेतु टूटते ही इंसान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।”

सुधारित शीतकोणासन (उत्कटासन) :-

यह एक शांतिप्रद योगासन है जो शारीरिक और मानसिक स्थिति को सुधारने में मदद कर सकता है। सीधे खड़े होकर हड्डियों को सही स्थिति में रखने से तनाव कम हो सकता है।

प्राणायाम तकनीक:-

अनुलोम-विलोम, कपाल भाति और भ्रामरी जैसे प्राणायाम तकनीकें मानसिक चेतना और ध्यान को बढाती हैं, जिससे चिंता और क्रोध को नियंत्रित करने में सहजता मिलती है।

मसाज और शारीरिक एक्सरसाइज :-

सीधे हड्डियों और कंधों पर  मसाज करना शारीरिक तनाव को कम करने में सहारा बन सकता है। साथ ही, नियमित शारीरिक एक्सरसाइज भी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।

लाफ्टर थेरेपी:-

आप देखे होंगे बहुत सारे लाफ्टर क्लब, लाफ्टर थेरेपी के माध्यम से लोगों के स्ट्रेस दूर करने का कारगर उपाय करते रहते हैं। हो सके तो  ऐसे लाफ्टर क्लब ज्वाइन करें या इस थेरेपी को कही से सीखकर एक ग्रुप बनायें तथा इसका प्रयोग करें। हँसे हँसायें खुशियां फैलाएं।

प्रकृति की गोद में:-

कहा जाता है कि अगर आप अशांति महसूस कर रहे हैं तो किसी पानी के स्रोत के पास जाकर बस उसे देखते रहें। कुछ ही मिनटों में आपका मन शांत होने लगेगा। प्राकृतिक सौंदर्य, शांतिपूर्ण स्थल, और सुरक्षित महौल में रहकर मानसिक स्वस्थ्य को बनाए रख पाना बहुत ही आसान हो जाता है। इसलिए जब भी समय मिले प्राकृतिक छटा का आनंद उठाने जरूर जाएँ।

पर्याप्त विश्राम करें:-

पर्याप्त विश्राम और गहरी नींद हमारे ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में बहुत ही सहयोगी है। नींद से ऊर्जा संग्रहित होता है, जो आपके शांति और स्थिरता को बढाती है। अगर आप 6 से 8 घंटे की नींद हर दिन लेते है तो यह आपके अंदर सकारात्मकता को बढ़ता है। और आपको क्रोध और बेचैनी से मुक्ति पाने में सहायता मिलती है।

ध्यान को अपनाएं:-

ध्यान कोई साधारण विधि या उपाय नहीं है बल्कि जीवन पद्धति है। यह खुद को पाने का सबसे कारगर ढंग है। यह एक ऐसा आईना है जो आपको आपसे मिलाती है। ध्यान की कई विधियों में से कोई एक विधि भी आपके जीवन को पूर्णरूपेण बदलने में सक्षम है।

अक्सर आपने देखा होगा कि आपके अशांति में आपके विचार का सबसे बड़ा हाथ रहता है। इसे उदहारण से समझने का प्रयास करते हैं – आप शांत बैठे हैं, और सामने एक कला कुत्ता गुजरता है। उसे देखते ही आपको वह पुरानी बात याद हो आयी है; जब आप पर, आपके पड़ोसी ने एक छोटी-सी बहस के दौरान अपना काला कुत्ता छोड़ दिया और वह आपको काट भी लिया। आपको काफी मुसीबतें भी उठानी पड़ गयी थी। इस घटना को याद कर आपके भौहें फिर से कपाल से जा लगी और मुट्ठियां फिर से भींच गयी और उसे पीटने का मन होने लगा। आप कहीं गए भी नहीं, कोई पडोसी मिला भी नहीं, पर आप क्रोध और बेचैनी से भर गए। इसी तरह हज़ारों विचार आपके मन को दिनभर दौड़ाता रहता है। आप उसके शिकार होते रहते हैं। जबकि इसका निदान ध्यान की विधियां  जैसे- विपश्यना और साक्षी भाव द्वारा आसानी से किया जा सकता है। अगर हो सके तो आप गाइडेड मैडिटेशन को अपनाएं जो आपके लिये और भी फायदेमंद साबित होगा।

बहस पड़ने से बचें:-

क्रोध और बेचैनी का मुख्य कारण वेवजह किसी मुद्दे में उलझने से पैदा होता है। जैसे कि आप कहीं गाते-मुस्कुराते जा रहे हों और चौराहे पर राजनैतिक चर्चा हो रही हो। आप वहां से बिना ध्यान दिए भी आगे बढ़ सकते हैं, परन्तु आपके द्वारा समर्थित किसी पार्टी या नेता को गाली दिया जा रहा हो तो आप रूककर अपना पक्ष रखने का प्रयास अक्सर करते हैं। बहुत बार सामने वाले से तू तू -मैं मैं की नौबत आ जाती है। अब आप अपना गाना-मुस्कुराना भूल गए सो अलग, अब आपके मन में उस बन्दे को मजा चखा देने की बात चलने लगी। आप उसे मजा चखा पाएं या नहीं चखा पाएं; परन्तु आप अशांति को जरूर गले लगा लिये। यहाँ आप मुफ्त में अशांति कमाई।

इससे बचने के लिये शुरुआत में प्रण करें कि बिना वजह के बहस में नहीं पड़ेंगे। प्रयास करते रहें एक समय ऐसा आएगा जब वजह भी होगा और आप बहस करने से बचेंगे। क्योंकि आप शांति के आनंद ले चुके होंगे तो अशांति में क्यों पड़ेंगे।

ऊर्जा के दिशा में बदलाव करें(ध्यान):-

क्रोध ऊर्जा का अनियंत्रित रूप है। इसमें ऊर्जा का अतिरेक होता है। क्रोध गलत दिशों में बहकर शांत होता है। जैसे ही आप क्रोधित होते हैं, क्रोध की प्रचंड ऊर्जा किसी दिशा से निकलना चाहता है। साधारणतः गुस्से की जो भी वजह होती है वह उसी दिशा को चुनता है। फिर अपना असर दिखाकर शांत हो जाता है। इसे उदहारण से समझते हैं- जब आपको कोई गाली देता है और अगर वह कमजोर है तो आप एक-दो तप्पड़ जड़ देते हैं। आपका गुस्सा आपके हांथों के रास्ते निकलकर शांत हो जाता है। परन्तु अगर सामने वाला आपसे ज्यादा ताकवर होता है।आप उसे पीट नहीं पाते हैं लेकिन गुस्से से आपके मुट्ठियां भींच गयी तो भी ऊर्जा आपके हांथों के रास्ते बहार निकल कर शांत हो जाती है। और अगर आप अपनी मुट्ठियां नहीं भींच पाए और किसी भी प्रकार के शारीरिक क्रिया नहीं कर सके। जैसे चीखना-चिल्लाना, गाली देना इत्यादि तो वह आपके साथ बनी रहेगी और आपको बेचैन करती रहेगी। और यदि घर आकर आप रूम में बंद होकर चीख-चिल्ला लेंगे, या कोई मेहनत भरा कार्य कर लेंगें; तो आपके ऊर्जा को निकास का रास्ता मिल जायेगा। किसी तकिये को अपना दुश्मन समझ कर पिट लें तो भी आपके ऊर्जा को एक दिशा मिल जायेगा और आप शांति महसूस करेंगे।

तकिये को पीटना या मुट्ठी भींचना या किसी कलात्मक कार्य को करना; ऊर्जा का दिशा परिवर्तन है। इन क्रियाओं में ऊर्जा बहार निकल कर यूनिवर्स में खो जाती  है। अगर ऊर्जा का सदुपयोग करना है तो इसे अंदर की ओर मोड़ना होगा। इसके लिए आप अपने आँख को बंद कर, उठ रहे क्रोध ऊर्जा को अपने अपने सहस्त्रार केंद्र की ओर ले जाने का प्रयास करें। या अपनी इस ऊर्जा को अपने किसी कमजोर अंग को ओर ले जाने का प्रयास करें। आप ध्यान करें कि आपकी क्रोध से उठी ऊर्जा कमजोर अंग को मजबूत कर रहा है। कुछ ही दिनों में आपका वह कमजोर अंग मजबूत हो जायेगा। इस तरह आप अपनी ऊर्जा का सदुपयोग कर पाएंगे।

FAQ:-

१ प्रश्न:-  क्रोध को तुरंत कैसे नियंत्रित करें?

उत्तर:-(a) क्रोध के वक्त 3 से 5 गहरी साँस लें।

(b) सांसों के चलने पर ध्यान रखें।

(c) क्रोध उठा उसे देखने का प्रयास करें।

(d) गुस्सा को शत्रु के रूप में न देखें। बस उसका निरीक्षण करें।

(e) जब बाद में पश्चाताप उठे उसका भी केवल निरीक्षण करें। जैसे आप किसी दूसरे को देखते हैं।

अगर आप ऐसा कर पाए तो मेरा दावा है कि क्रोध आपको छू भी नहीं पायेगा।

२ प्रश्न:- मुझे गुस्सा बहुत आता है मैं क्या करूँ?

उत्तर:-  गुस्सा अहंकार का ही गन्दा रूप है।

(a) यह जब भी आये आप एकाएक बस कुछ क्षणों के लिए रुक जाएँ।

(b) सबसे पहले 10-20 सेकंड के लिए इसे टाल दें। फिर इस समय को 20 से 30 सेकंड के लिए टालें। फिर समय बढ़ाते                      जाएँ। अगर आप ऐसा कर सके तो निश्चित ही आप इसके मालिक हो जायेंगे।

(c) गुस्से के वक्त एक बात का मंत्र बना लें कि “कोई भी बाँदा 100% परफेक्ट नहीं हो सकता है।”

३ प्रश्न:- क्रोध की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

उत्तर :- अंग्रेजी दावा – citalopram (Celexa) , sertraline (Zoloft) , fluoxetine (Prozac) , serotonin                                   norepinephrine reuptake inhibitors .

होम्योपैथिक मेडिसिन- Nux Vomica

आयुर्वेदिक दवा – ब्राम्ही चव्यनप्राश और घी दिमाग को शांत करने के लिए सबसे बेस्ट माना गया।

४ प्रश्न:- क्रोध और तनाव को कैसे दूर करें?

उत्तर :- (a) उलटी गिनती गिनना या संगीत सुनना तात्कालिक समाधान हो सकता है।

(b) ध्यान की कुछ विधियां चमत्कारिक हो सकता है। उसमें भी जो साँस से जुड़ी होती है। जैसे विपश्यना

(c) ओशो का सक्रिय ध्यान साधना बहुत ही असरदार विधि है।

(d) तकिया पीटना क्रिया- तनाव और क्रोध अकेले में तकिया पीटने से गायब होने लगती है।

५ प्रश्न:- ज्यादा क्रोध आने पर क्या करें?

उत्तर :- जब भी आपको क्रोध आए तो किसी पर क्रोधित होने की कोई जरुरत नहीं, एक कमरा में खुद को बंद कर लें। जितना क्रोध मन में आए आने दें। यदि किसी को मारने- पीटने का मन में भाव आए तो एक तकिया ले लें और तकिये को मारे- पीटें। तकिये के साथ जो करना हो करें। यदि तकिये को मार ही डालना चाहते हैं तो एक चाकू ले लें और उसे मार ही डालें।

यह बेतुकी और मूर्खतापूर्ण कार्य लगेगा। क्या क्रोध उससे ज्यादा बेतुका नहीं है? इस घटना को देखने का प्रयास करें। हम किसी को पीड़ा और नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं इसलिए बिंदास इसे करें। थोड़े ही दिनों के प्रयोग से आप पाएंगे कि किसी को पीड़ा देने का भाव धीरे-धीरे विलीन होने लगा है।

इसे रोज 20 मिनट दो सप्ताह तक करके देखें। आप यह देख कर हैरान रह जायेंगे कि किसी भी परिस्थिति में आपको क्रोध नहीं पकड़ पा रहा है। अगर सच में क्रोध से आप परेशान हैं तो  इसे आप जरूर अजमाएंगें।

६प्रश्न:- मुझे छोटी-छोटी बातों पर इतना गुस्सा क्यों आता है?

उत्तर :- क्योंकि आपको लगता है कि आप परफेक्ट हैं। आप जो करते हैं बेस्ट है। यानि अपने ईगो पर ध्यान दें। दुर्बलता और शरीर में खनिज की कमी खासकर मैग्निशयम की न्यूनता आपके मूड को छोटी-छोटी बातों ख़राब कर देती है। मग्नेशियम की मात्रा बढ़ाएं।

७प्रश्न:- शरीर में बेचैनी हो तो क्या करें?

उत्तर :- शरीर में बेचैनी के कारण:- 1 ब्लड प्रेशर, 2 हाई कोलेस्ट्रॉल, 3 जीवन के प्रति निराशा, 4 बुरा होने का भय,  निदान – योग, ध्यान, पर्याप्त नींद , और संतुलित भोजन।

८प्रश्न:- मैं डर और चिंता से छुटकारा कैसे पाऊँ?

उत्तर :- अपने डर और चिंता को समझने का प्रयास करें। उसके कारण को देखें। उसकी चीड़-फाड़ करें। डर कहाँ से उठ रह है? अपने पहले के समय को याद करें जब आपको ये सब नहीं था और उससे आज की परिस्थिति की तुलना करें। आप अगर ये कर सके तो सब समस्या समाप्त हो जायेगा। आपको जो मिला उसके प्रति आभार से भर जाएँ।

९प्रश्न:- डिप्रेशन से छुटकारा कैसे पाएं?

उत्तर :- जब आपके अंदर ये भावना आ जाय कि जो होगा देखा जायेगा तो आपको जीवन में डिप्रेशन कभी छू भी नहीं सकता है। इसका कारण है कि फलाना काम ऐसा ही होना चाहिए। अगर न हो पाती है तो निराशा और उदासी घेर लेती है और यही लगातार बने रहे हो डिप्रेशन का रूप ले लेती है। समझ से ये भी चली जाएगी।

१०प्रश्न:- एंग्जायटी अटैक को कैसे शांत करें?

उत्तर :- एंग्जायटी के लिए आपको अपने रूटीन में सुधार करना होगा। अपनी पुरानी बोरियत दिनचर्या में पॉजिटिव बदलाव करें और अपने अंदर दया और करुणा  का बीज बोने का कार्य करें।

सारांश:-

इस लेख का समापन करते समय, हम साकारात्मक और सतर्क मानसिकता की दिशा में कार्रवाई करने का सुझाव देते हैं जो हमें क्रोध और बेचैनी से बचने के 10 प्रैक्टिकल उपाय पाने की दिशा में अग्रसर कर सकेगा। इस लिख के भावनाओं को समझने का प्रयास करें और जो सही और संभव कदम बन सके, का पालन पूरी तन्मयता से करने का प्रयास करें। ताकि सकारात्मक बदलाव लाने में हम सफल हो सकें। 

Leave a comment